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लेखक परिचय
गिरीश पंकज
सुप्रसिद्ध साहित्यकार गिरीशजी साहित्य अकादेमी, दिल्ली के सदस्य एवं रायपुर (छत्तीसगढ) से निकलने वाली साहित्यिक पत्रिका सद्भावना दर्पण के संपादक हैं।नॉटी’ नहीं, ये ‘नंगी’ रातें हैं…
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ऐसे अश्लील कार्यक्रमों का विरोध होना ही चाहिए
गिरीश पंकज
रेडियों की दुनिया से जुड़े मेरे मित्र तेजपाल हंसपाल का पिछले दिनों एक मोबाइल-सन्देश मिला कि ”एक निजी रेडियो चेनल पर देर रात को एक अश्लील कार्यक्रम आता है.उसका नाम है- ”नॉटी रातें” उसको सुनें और उसका विरोध करे”. अमूमन फूहड़ताओं से भरे अनेक एफएम चेनल सुनने का पाप मैं नहीं करता, लेकिन मजबूरी में सुनना ही पडा. और सच कहूँ, तो सुन कर माथा शर्म से झुक गया. यह कार्यक्रम इतना पतनशील है, कि उसके लिये शब्द नहीं मिलते. परिवार के साथ क्या, इसे अकेले भी सुनना भारी लगने लगा. ऐसे कार्यक्रम सुनांने का मतलब है, अपने मनुष्य होने कि शर्त से नीचे गिरना है. दुःख और गुस्सा तब और बढ़ जाता है, कि यह कार्यक्रम एक औरत के माध्यम से प्रस्तुत कराया जा रहा है. बाज़ार में अपना माल खपाने वाले शातिर हो चुके हैं. ये लोग पुरुषों के लिये काम में आने वाली चीज़े भी बेचने के लिये औरतों का सहारा लेते है. इस वक्त बाज़ार अश्लीलता से पटा पडा है. और इसके लिये महिलाओं का इस्तेमाल हो रहा है.और कुछ कमजोर सोच वाली महिलाएं भी इनके चक्कर में आ जाती है. कुछ को अपना ”कैरियर” बनाना है तो कुछ के दूसरे लक्ष्य हैं. चिंता की बात यह है,कि अश्लीलता का कही कोई प्रतिवाद नहीं नज़र आता. शायद इसलिये कि मुर्दाशांति इस वैश्विक बाजारवाद की दें है. खा-पी कर मनोरंजन के लिये अपनी रातों को ”नॉटी” या अश्लील बनाने का जुगाड़ करने वाले समाज में अब पतन जैसे शब्द पिछड़ेपन की निशानी है. फिर भी प्रतिकार होना चाहिए.
मनोरंजक कार्यक्रम हों तो उनका स्वागत है लेकिन जो चीज़े यहाँ की फिज़ा में वैचारिक जहर घोलने का काम कर रही है, उनका विरोध ज़रूरी है. यह हमारी सामाजिक और नैतिक ज़िम्मेदारी है. एक रेडियो चेनल में जो कार्यक्रम आता है उसका सार यही होताहै कि वह स्त्री-पुरुषों से यह ”कन्फेस” करवाता है कि उन्होंने जाने-अनजाने कब, कहाँ कैसी अश्लील हरकत की. कुछ लोग अपना नाम छिपा लेते है. कुछ लोग हो सकता है, काल्पनिक नाम भी बताते हों. मै उस कार्यक्रम के ‘चरित्र’ को सुनने-समझने के लिये जिस दिन सुनरहा था, उस दिन एक लड़की ने महिला एंकर को बताया कि उसके एक ‘कजिन’ ने उसके साथ अश्लील हरकत की. लड़की उसे बारे में खुलकर बता रही थी. और वह कुछ-कुछ दुखी भी लग रही थी. एक बार एक लड़की ने बताया, कि एक बार वो सब हो गया जो नहीं होना चाहिए था. फिर बार-बार कहती थी, ”आप समझ रही है न मैं, क्या कह रही हूँ” . मै हिम्मत जुटा कर केवल दो बार ही यह कार्यक्रम सुन सका इसलिये कि मै इसके खिलाफ लिखना चाहता था. एक लेखक केवल यही कर सकता है. अब तो समाज का दायित्व है कि वह उन लोगों के खिलाफ खड़े हो, जो जानबूझ कर कोशिश करते रहते है,कि समाज में अश्लीलता फैले. आपको याद होगा कि अभी कुछ् महीने पहले टीवी पर एक कार्यक्रम आता था, जिसमे लोग अपने गुनाह कबूल किया करते थे, लोग दर्शकों के सामने अपनी तरह-तरह की नीचताओं का खुलासा करते थे. अंत में अवैध संबंधों की स्वीकारोक्ति भी करते थे. बाद में व्यापक विरोध के कारण यह कार्यक्रम बंद हो गया. उस कार्यक्रम का विरोध करने वाले कम नहीं थे. मतलब साफ़ है कि अगर घटिया कार्यक्रम बना कर दिखाने वालें लोग मौजूद है तो उसका विरोध करने वाले लोग भी है. अभी हमारा समाज पूरी तरह से पतित नहीं हो सका है.हैरत की बात है,कि उक्त अश्लील कार्यक्रम के विरुद्ध सामाजिक संस्थाए मौन है. यह चुप्पी चिंताजनक है.
समाज में अश्लीलता का वातावरण बनाने और अपने पतन का, अपने काले कारानामो का खुलासा करके लोग ”कन्फेस’ नहीं कर रहे, वे लोग दरअसल कमजोर मन-मस्तिष्क वाले श्रोताओं को एक तरह से गलत काम करने के लिये प्रेरित ही कर रहे है. किसी फिल्म का कोई दृश्य देख कर कुछ लोग उसकी नक़ल करने पर आमादा हो जाते है. रेडियो के इस अश्लील कार्यक्रम का भी उलटा असर होगा. इसलिये समय रहते इसके खिलाफ आवाज़ उठनी ही चाहिए. कार्यक्रम करना ही है, तो क्या कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं बन सकता जिसमे कोई व्यक्ति यह बताये कि उसने लोक कल्याण के क्या-क्या काम किये या उसके जीवन में ऐसे लोग भी आये जिन्होंने उसे संकट से उबरा. या किसे विकलांग ने कोई बड़ा काम किया. या फिर आपने पिछले दिनों आपने क्या पढ़ा. आदि-आदि. लेकिन ऐसे कार्यक्रम बना कर निजी चेनल अपना दीवाला क्यों पिटवाएगा. जब वह ”अश्लील रातों” ‘को बेच-बेच कर समाज को बर्बाद करने का मजा ले रहा है, तो वह नैतिक मूल्यों को प्रोत्साहित करने वाले कार्यक्रम क्यों पेश करे?
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